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Saturday, September 19, 2009

कमरा

यादे बंद कमरे में रखने की आदत है तुम्हे
कमरा बंद रखते हो पर चाबी खोने का गम नही
कोई झाँक कर देखे भी तो क्या देखे टूटी खिड़की से ,
अंधेरेसे गीली हुई जमीन और दीवारों पर नम कहीं

रौशन लकीरें तरस गयी है भीतर आने कों
खिड़की को भी साँस लेने दो कभी यूँही
ये सोई हुई यादें ताजा होने का डर है तुम्हें
और यादोंकों छुपना है सोये अन्धेरोमे कहीं.

अब यादोंको उजाला मिल भी जाए तो क्या हो
ये रोशन यादे जुगनू बनके उड़ने वाली नहीं
दीवारोंपे रंग भी लग जाए तो क्या हो
कमरे में बसी तस्वीर हटने वाली नही



--------------आदित्य देवधर

1 comment:

Unknown said...

very nice.... :).... meaningful