एक मुसाफिर वक्त से आगे निकलकर जी गया
वक्त बेदर्दी से आखिर काम उसका कर गया ।
आसमाँ शामिल न था इसमे, बिचारा रो गया ।
वक्त बेदर्दी से आखिर काम उसका कर गया ।
वक्त बेदर्दी से आखिर काम उसका कर गया ।
संगदिलोमे आपका चलता रहेगा कारवाँ
एक सूरज आज बस यूँ मुस्कुराहते ढल गया । वक्त बेदर्दी से आखिर काम उसका कर गया ।
---आदित्य
No comments:
Post a Comment