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Wednesday, May 26, 2010

तेरे नज़ारे की

हमें उम्मीद न थी तेरे नज़ारे की
क़यामत दीवानी थी तेरे नज़ारे की

गुजरा करे गलीसे तेरी ए हुस्न वाले
बुझा दो प्यास हमारी तेरे नज़ारे की

बेताब दिल की जुबाँ कैसे बयाँ करू मैं
एक झलक तो पिला दो तेरे नज़ारे की

एक बार मुस्कुराके देखो ज़रा इधर भी 
गीली हसीं बरसा दो  तेरे नज़ारे की

लो चले हम उठकर दुनियासे तुम्हारी
तमन्ना बंद आँखों में तेरे नज़ारे की

पाँव मेरे लडखडाये कभी राह चलते
यादे मिली पुरानी तेरे नज़ारे की

------आदित्य

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