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Monday, November 24, 2014

तेरे नैना

तेरे नैना छुप छुप के
जो बातें मुझसे करते हैं
छू जाती हैं दिल को लेकिन
होंठ सिले ही रहते हैं

इन आंखोकी गहराईमे
गिर जाए ना चाँद कहीं
झील के किनारोंपे देखो
तारे पहरा करते हैं

खो जाता हूं कहीं न जाने
नीली नीली झील जानने
अनजाने खाबोंके रस्ते
वहीं कहींसे गुजरते हैं

याद है मुझे शाम सुहानी
आसमानसे शरमाती थी
उसी शाम के रंग सिमटकर
जजबातोंको संवरते  हैं

कह भी दो अब आँखोसे तुम
हाँ या ना जो भी सो हो
दीदार आपका  हो जाए,
बस यही तमन्ना करते हैं


---आदित्य


 

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