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Friday, October 31, 2014

परछाई

परछाईयों से डरता हूँ
पर उनकेही संग रहता हूँ
कभी दूरसे कभी पासमे
उनकेही संग चलता हूँ

डर जाती है अंधेरेमे
परछाई, और छुप जाती है
दिया जलाके रिश्ता अपना
और उजागर करता हूँ

शाम डूबती परछाईको
ले जाएगी दूर जहां में
वही कही वो बस जाती है
मैं एक तनहा सो जाता हूँ

सूरज की परछाई भी
खो जाती है किसी शहर में
सूरज बन के उस सूरज को
कुछ परछाई दे देता हूँ

-- आदित्य 

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