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Friday, March 25, 2011

क्यूं चाहता है मन मेरा

क्यूं चाहता है मन मेरा
तितली बने, उड़के चले वो
बादलोंको चूमने और
भीग जाए मन मेरा
क्यूं चाहता है मन मेरा

सात रंगों में समाके
रंग की दुनिया बनाके
ले चले अपने परोंपे
रंग जान-ए  मन मेरा
क्यूं चाहता है मन मेरा

रोशनी की झील में, हर
शाम को डुबकी लगाके
बूँद किरनोंकी पिलाके
डूब जाए मन मेरा
क्यूं चाहता है मन मेरा

ले चला मैं रात के
रंगीन सितारे टिमटिमाते
बादलोंसे दूर, दुनिया
को बसाए मन मेरा
क्यूं चाहता है मन मेरा

-------आदित्य देवधर 


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