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Monday, March 28, 2011

जिंदगी

धूप में जलती जलाती और रुलाती जिंदगी
शाम को पलकोंके नीचे मुस्कुराती जिंदगी

दर्द में भीगी हुई बाती चिरागों में जले
इस बुझीसी जिंदगी को ही बुझाती जिंदगी  

रो रहा हो आसमाँ तब, जी उठे सारा जहां
बारिशों की धार में रोती भिगोती जिंदगी

एक ऐसा दिन भी आए जो जिए सालों कईं
एक ऐसी जिंदगी से दिल लगाती जिंदगी

रोशनी की ले सवारी, चल पडी जाने कहाँ
बंद मुठ्ठी से निकलके सांस लेती जिंदगी

---आदित्य

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